कंप्यूटर वायरस क्या है | Computer virus kya hai

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कंप्यूटर वायरस एक छोटा सॉफ़्टवेयर प्रोग्राम होता है, यह वायरस एक कंप्यूटर से किसी अन्य कंप्यूटर में फैल जाता है और कंप्यूटर के संचालन को बाधित करता है। 

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What Is Computer Virus in Hindi

कंप्यूटर वायरस क्या है | What Is Computer Virus in Hindi

कंप्यूटर वायरस के प्रभाव (effects of computer virus)

  1. कम्प्यूटर में उपयोगी सूचनायें नष्ट होना।
  2. डायरेक्ट्री में बदलाव करना ।  
  3. हार्ड डिस्क व फ्लॉपी डिस्क को फॉर्मेट करना।  
  4. कम्प्यूटर की स्पीड कम कर देना।
  5. की-बोर्ड की कीज़ (keys) का कार्य बदल देना। 
  6. प्रोग्राम तथा अन्य फाइल्स का डाटा बदल देना।
  7. फाइलों को क्रियान्वित होने से रोक देना। 
  8. स्क्रीन पर बेकार की सूचनायें देना। 
  9. बूट सेक्टर में प्रविष्ट होकर कम्प्यूटर को कार्य न करने देना।
  10. फाइलों के आकार तथा स्ट्रक्चर को परिवर्तित कर देना। जब किसी वायरस युक्त प्रोग्राम को क्रियान्वित (execute) किया जाता है तो यह कम्प्यूटर की प्राइमरी मेमोरी में क्रियान्वित होता है।
  11. वायरस कंप्यूटर पर मौजूद डेटा को प्रभावित कर सकता है, उसे हटा सकता है, किसी अन्य कंप्यूटर पर फैलाने के लिये किसी ईमेल का उपयोग कर सकता है या हार्ड डिस्क पर मौजूद प्रत्येक चीज़ को डिलीट भी कर सकता है।

परिचय (Introduction)  - 

वायरस का नाम कम्प्यूटर के किसी भी उपयोगकर्ता को भयभीत करने के लिए पर्याप्त है। संसार का कोई ऐसा कम्प्यूटर न होगा जो वायरस के संक्रमण से सुरक्षित होगा। वायरस कई तरह से कंप्यूटर को प्रभावित करते हैं तथा इनके विभिन्न प्रकार है। इन्हें समाप्त करने के लिए कई प्रोग्राम आते हैं। इस अध्याय में वायरस के बारे में पर्याप्त मात्रा में हम सूचना ग्रहण करेंगे।

 वायरस (Virus) -

 कंप्यूटर वायरस सजीव है या निर्जीव है। यदि यह सजीव नहीं हैं तो क्या है? आइए इस खण्ड में यही जानते हैं कि वायरस क्या है? यह कम्प्यूटर को किस प्रकार संक्रमित करता है? (What is a virus? How does it infect the computers ? ) आम तौर पर जब कम्प्यूटर क्षेत्र में वायरस की बात आती है तो गलती से हम उस वायरस की कल्पना कर लेते हैं जो हमें प्रायः ज्वर तथा दूसरी बीमारियों से ग्रस्त करता रहता है।

वास्तविकता यह नहीं है। में कम्यूटर वायरस कोई सजीव जीवाणु नहीं है जो हमारे शरीर को प्रभावित करता है। कम्प्यूटर वायरस का नाम इसके कुछ महत्वपूर्ण लक्षणों के कारण दिया गया है। 

कम्प्यूटर वायरस एक छोटा प्रोग्राम होता है जो जब कम्प्यूटर में प्रवेश करता है, यह इसके पूर्व स्थापित (pre-installed) प्रोग्राम्स में सम्मिलित होकर इसके कार्यों में बाधा डालने का प्रयास करता है (ठीक सजीव वायरस की तरह, जो हमारे शरीर में प्रवेश पाने के बाद हमारे कार्यशक्ति को प्रभावित करता है)।

यह निम्नलिखित प्रकार से कम्प्यूटर को प्रभावित करता है।

कम्प्यूटर वायरस का पूरा नाम होता है- 

(Vital Information Resources Under Seize) ये एक ऐसा प्रोग्राम होता है जो अपने आप को copy करता है। एक कम्प्यूटर वायरस एक कम्प्यूटर प्रोग्राम (Computer Program) है जो अपने को कॉपी कर सकता है और उपयोगकर्ता की अनुमति के बिना एक कंम्प्यूटर को संक्रमित कर सकता है और उपयोगकर्ता को इसका पता भी नहीं चलता है। 

विभिन्न प्रकार के मैलवैयर (Malware) और एडवेयर (Adware) प्रोग्राम्स के संदर्भ में भी "वायरस" शब्द का उपयोग सामान्य रूप से होता है। हालाँकि यह कभी-कभी गलती से भी होता है। मूल वायरस अनुलिपियों में परिवर्तन कर सकता है। या कापियाँ खुद अपने आप में परिवर्तन कर सकती हैं, जैसा कि एक रूपांतरित वायरस (Metamorphic virus) में होता है। यह नाम सयोग वश बीमारी वाले वायरस से मिलता है मगर ये उनसे पूर्णतः अलग होते हैं।

 वायरस प्रोग्रामों का प्रमुख उद्देश्य केवल कम्प्यूटर मेमोरी में एकत्रित आंकड़ों व संपर्क में आने वाले सभी प्रोग्रामों को अपने संक्रमण से प्रभावित करना है। वास्तव में कम्प्यूटर वायरस कुछ निर्देशों का एक कम्प्यूटर प्रोग्राम मात्र होता है जौ अत्यन्त सूक्ष्म किन्तु शक्तिशाली होता है। यह कम्प्यूटर को अपने तरीके से निर्देशित कर सकता है। ये वायरस प्रोग्राम किसी भी सामान्य कम्प्यूटर प्रोग्राम के साथ जुड़ जाते हैं और उनके माध्यम से कम्प्यूटरों में प्रवेश पाकर अपने उद्देश्य अर्थात् डाटा और प्रोग्राम को नष्ट करने के उद्देश्य को पूरा करते हैं। अपने संक्रमणकारी प्रभाव से ये सम्पर्क में आने वाले सभी प्रोग्रामों को प्रभावित कर नष्ट अथवा क्षत-विक्षत कर देते हैं। वायरस से प्रभावित कोई भी कम्प्यूटर प्रोग्राम अपनी सामान्य कार्य शैली में अनजानी तथा अनचाही रुकावटें, गलतियां तथा कई अन्य समस्याएँ पैदा कर देता है।

 प्रत्येक वासरस प्रोग्राम कुछ कम्प्यूटर निर्देशों का एक समूह होत है जिसमें उसके अस्तित्व को बनाएं, रखने का तरीका, संक्रमण फैलाने का तरीका तथा हानि का प्रकार निर्दिष्ट होता है। सभी कम्प्यूटर वायरल प्रोग्राम मुख्यत : असेम्बली भाषा या किसी उच्च स्तरीय भाषा जैसे "पास्कल" या "सी" में लिखे होते है।

वायरस के प्रकार :

 1. बट सेक्टर वायरस

 2. फाइल वायरस

 3. अन्य वायरस

File Factor... (फाइल फेक्टर) ये वायरस कम्प्यूटर में फाइल के पते को बदल देते हैं।

 Boot Virus. . . (बूट वायरस) ये ऐसा वायरस है जो कि सिस्टम बायोज पर असर डालता है, व खराव करता है, जिसकी वजह से कम्प्यूटर के हार्डवेयर काम करना छोड़ने लगते है और malware कई प्रकार के होते हैं और विस्तार में उन सभी को परिभाषित करना बहुत मुश्किल है और समझना भी, इसलिए यहाँ मैं संक्षिप्त में इन मेंसे कुछ समझा रहा हूँ : 

1. ट्रोजन हॉर्स (Trojan Horse)

 एक ट्रोजन बड़ी गुपचुप तरीके से आप के कम्प्यूटर सिस्टम को संक्रमित कर देगा जो एक दुर्भावनापूर्ण प्रोग्राम है। जतवरंदे अन्य कार्यक्रमों सबसे ऊपर आता है और उपयोगकर्ता के ज्ञान के बिना एक सिस्टम पर स्थापित हो जाता है ट्रोजन्स आपके सिस्टम पर एक लक्ष्य बनाकर हैकिंग सॉफ्टवेयर स्थापित कर और उस प्रणाली तक हैकर की पहुँच बनाने और बनाए रखने में हैकर की सहायता करने के लिए इस्तेमाल किया व बनाया जाता है। ट्रोजन में कई भिन्न प्रकार होते हैं, इनमें से कुछ : 1. Remote Administration Trojans (दूरस्थ प्रशासन ट्रोजन)

 2. Data Stealing Trojans (डाटा ट्रोजन चोरी) 

. 3. Security Disable Trojan (सुरक्षा क्पेंइसमत ट्रोजन)

 4. Control Changer Trojan (नियंत्रण परिवर्तक ट्रोजन) कुछ प्रसिद्ध ट्रोजन :

1. Beast (बीस्ट) 

2.  Back Orifice (बैक ऑरीफाइस)

3. Net Bus (नेट बस) 

4.Pro Rat (प्रो रैट)

 5. Girl Friend (गर्ल फ्रेंड) 

6. Sub Seven etc. (सब सेवन ई टी सी)

 7. Boot Sector Virus (सेक्टर वायरस बूट) : ये एक ऐसा वायरस है कि बूटिंग के समय में कम्प्यूर के द्वारा पढ़ा जाता है कि सिस्टम बूट फाइलों को ही देखता है। ये आम तौर पर फ्लॉपी डिस्क के जरिये फैलता हैं। 

8. Macro Virus (मैक्रो वायरस) : मैक्रो वायरस खुद को वितरीत करने के लिए बनाए जाते है ये एके मैक्रो प्रोग्रामिंग भाषा का उपयोग करने वाले वायरस होते हैं। वे ऐसे एमएस वर्ड या एमएस एक्सेल के रूप में दस्तावेजों को संक्रमित कर देते हैं और आम तौर पर इसे तरह की अन्य दस्तावेजों में अपनी प्रोग्रामिंग भाषा फैला देते हैं।

 9. Worms (वोर्म्स) : वोर्म्स एक कीड़ा बना देता है और खुद की प्रतियों के वितरणको सुविधा देता है जो कि एक कार्यक्रम होता है। उदाहरणार्थ एक डिस्क ड्राइव से दूसरे या ईमेल का उपयोग कर अपने आप को कॉपी करने के लिए कार्यक्रम होता हैं। यह प्रणाली भेद्यता के शोषण के माध्यम से या एक संक्रमित ई-मेल पर क्लिककरके आ सकता है वोर्म्स यानी कीड़े का सबसे सामान्य स्त्रोत नकली ई-मेल या ई-मेल संलग्नक हैं। 

10. Memory Resident Virus (मेमोरी रेजिडेंट वायरस) : मेमोरी रेजिडेट वायरस एक कंम्प्यूटर में अस्थित स्मृति (रैम) में जाकरें रहते हैं। वे डब एक प्रोग्राम कंम्प्यूटर पर चलता है तो ये भी उसी के साथ चलते हैं और शुरूआत में ही प्रोग्राम बंद करके बाद में स्मृति में रह जाते हैं। 

11. Root Kit Virus (रूटकिट वायरस) : एक रूटकिट वायरस किसी एक कंम्प्यूटर प्रणाली का नियंत्रण हासिल करने के लिए अनुमति देने के लिए बनाया जाता है जो कि एक undetectable वायरस हैं। रूटकिट वायरस लिनक्स व्यवस्थापक जड़ उपयोगकर्ता से आता है। ये वायरस आमतौर पर ट्रोजन द्वारा भी स्थापित होता है।

इतिहास (History)

 किसी भी चीज का इतिहास जानना बड़ा रोचक होता है। आइए इस खण्ड में हम जानते हैं कि वायरस का इतिहास क्या है? (What is the history of Virus ?) कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के एक विद्यार्थी फ्रेड कोहेन (Fred Cohen) ने अपने शोध पत्र में किया था। उस विद्यार्थी ने अपने शोधपत्र में यह दर्शाया था कि कैसे कम्प्यूटर प्रोग्राम लिखा जाये जो कम्प्यूटर में एन्टर करके उस के सिस्टम पर आक्रमण करे, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार वायरस हमारे शरीर में घुसकर इस संक्रमित करता है। सर्वप्रथम कम्प्यूटर वायरस को ढूँढना अत्यन्त ही कठिन है। इसके बारे में लोगों को 1980 के दशक तक पता नहीं था तथा लोग इस बात को भी अस्वीकार करते थे कि इस तरह का कोई प्रोग्राम होता है जो कम्प्यूटर को बाधा पहुँचा सकता हो। आधुनिक वायरस में (C) Brain नाम का पहला वायरस माना जाता है जो पूरे विश्व में बड़े स्तर पर फैला था। इस वायरस को एक समाचार का रूप मिला था क्योंकि इस वायरस में वायरस बनाने वाले का नाम, पता तथा इसका विशेषाधिकार वर्ष (1986) मौजूद था। उस प्रोग्राम में दो पाकिस्तानी भाइयों बासित तथा अमजद तथा उनकी कम्पनी का नाम तथा पूर्ण पता उपलब्ध था। उस समय वायरस बिल्कुल नया था अतः लोगों ने इसके बारे में बहुत गम्भीरता से नहीं सोचा। सन् 1988 के प्रारम्भ में मैकिनटोश पीस वायरस (Macintosh Peace Virus) उभरा। यह वायरस मॉन्ट्रीएल स्थित एक पत्रिका मैकमैग (MacMag) के प्रकाशक रिचर्ड ब्रेनडॉ (Richard Brandow) की ओर से था। इस वायरस को मैकिनटॉश ऑपरेटिंग सिस्टम को बाधित करने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया था तथा 2 मार्च, 1988 को निम्नलिखित संदेश स्क्रीन पर आया "रिचर्ड ब्रैन्डॉ, मैकमैग के प्रकाशक तथा इनके कर्मचारी दुनिया के समस्त मैकिनटॉश यूजर्स को  

शांति का संदेश देना चाहते हैं" (Richard Brandow, Publisher of MacMag, and its enture staff would like to take this opportunity to convey their Universal Message of Peace to all Macintosh Users around the world) वायरस दिन प्रतिदिन समय के अनुसार आते गये तथा इससे बचने के लिए प्रयोक्ता ने इस समस्या का हल भी ढूँढना शुरू किया और तब वायरस विरोधी सॉफ्टवेयर (Anti- Virus Softwares) का आविष्कार हुआ जो आज अपने आप में एक सम्पूर्ण उद्योग है। परन्तु जैसे जैसे वायरस विरोधी सॉफ्टवेयर बनते गये, उसी गति से नये-नये वायरस भी बनाये जाने लगे। जब वायरस विरोधी सॉफ्टवेयर उद्योग ने समझ लिया कि अब उन्होंने इस पर नियंत्रण कर लिया है तभी मैक्रो वायरस (Macro Virus) का उदय हुआ। सामान्य वायरस (Normal Virus) एग्जिक्यूटेबिल फाइलों तथा सिस्टम एरिया को संक्रमित करते थे जबकि मैक्रो वायरस ने माइक्रोसॉफ्ट वर्ड की फाइलों को संक्रमित करना शुरू किया। इसके कारण बड़े स्तर पर समस्या आने लगी क्योंकि प्रायः लोग ई-मेल के द्वारा वर्ड में लिखी हुई फाइलों का आदान प्रदान करते थे। मैक्रो वायरस में सामान्य वायरस की अपेक्षा क्षति करने की क्षमता बहुत अधिक थीमैक्रो वायरस सीधे एप्लीकेशन प्रोग्राम पर आक्रमण करते थे फलस्वरूप डाटा क्षति की सम्भावना बहुत अधिक थी। इस वायरस ने फिर एक बार पूरे एन्टी-वायरस उद्योग को एक नये प्रकार के एन्टी-वायरस के विकास के लिए मजबूर किया। 

वायरस की कार्यप्रणाली (Mechanism of Virus) 

वायरस तथा इसके इतिहास को जानने के बाद आइए हम इस खण्ड में यह जानते हैं कि वायरस कार्य कैसे करता है? (How does a virus function ?) वायरस एक ऐसा कम्प्यूटर प्रोग्राम है जिसमें स्वयं को दुगुना करने की क्षमता होती है। किन्तु वायरस चूँकि एक कम्प्यूटर प्रोग्राम है, इसकी भी दूसरे प्रोग्राम की तरह सीमाएँ हैं। वायरस उतना ही कुछ कर सकता है जितना इसके प्रोग्रामर ने प्रोग्राम के द्वारा इसमें निर्देश दिए हैं। उदाहरणार्थ माइकल एन्जिलो (Michelangelo) वायरस 6 मार्च को डाटा को नष्ट करता है क्योंकि उसके प्रोग्रामर ने यह निर्देश इसमें समाहित किया है कि वह • पहले यह निश्चित करें कि आज का दिनांक 6 मार्च है और यदि यह यह पाता है कि आज 6 वायरस में अन्य प्रोग्राम्स से भिन्न, अपने आप को दुगुना / दोहराने की क्षमता होती है। सामान्यत : कोई मार्च है तब वह डिस्क सेक्टर को दिए गये निर्देश से प्रतिस्थापित करे। प्रोग्राम तब दुगुना होता है जब हम उसके लिए वैसा निर्देश देते हैं जैसे कि COPY कमाण्ड किसी विशेष फाइल की एक प्रति (Copy) बनाने के लिए दी जाती है। यूजर के द्वारा हम यह भी जानते हैं कि कोई भी प्रोग्राम तब तक स्वयं एक्जिक्यूट नहीं होता, जब तक कि हम ऐसा कोई निर्देश न दें। ठीक उसी प्रकार वायरस प्रोग्राम भी या तो प्रत्यक्ष रूप से क्रियान्वित होता है या यूजर द्वारा कोई अन्य प्रोग्राम क्रियान्वित करने पर अब प्रश्न यह है कि कोई भी • यूजर किसी वायरस को अपने ही कम्प्यूटर पर क्रियान्वित क्यों करेगा। इसके लिए वायरस निर्माता ऐसी तकनीक का प्रयोग करते हैं जिससे कि यूजर को मूर्ख बनाकर वायरस का क्रियान्वयन हो सके। अधिकतर परिस्थितियों में वायरस पहले से मौजूद एग्जिक्यूटेबल फाइल में होते हैं तथा जब वह फाइल एग्जिक्यूअ होती हैं तो साथ-साथ वायरस कोड भी एग्जिक्यूट हो जाते हैं।

एक बार जब यूजर द्वारा वायरस प्रोग्राम एग्जिक्यूट हो जाता है, यह पूर सिस्टम में फैल जाता है तथा उस प्रोग्राम में उपलब्ध निर्देशानुसार पूरे सिस्टम को क्षति पहुँचाना प्रारम्भ करता है। सामान्यतः वायरस प्रोग्राम धीरे-धीरे अपने आप को दूसरी एग्जिक्यूटेबल फाइल्स में कॉपी करना प्रारम्भ करते हैं और इस तरह उन फाइल्स का जब यूजर द्वारा एग्जिक्यूशन होता है, तब यह पूरे सिस्टम पर फैलते जाते हैं। अतः वायरस के संक्रमण के लिए उसका एग्जिक्यूट होना आवश्यक है।

वायरस फैलता कैसे है (How Virus Spreads)

 वायरस के बारे में, इसके इतिहास तथा कार्यप्रणाली के बारे में जानने का उद्देश्य इससे बचाव ही होता है। इससे बचाव के लिए यह जानना भी आवश्यक है कि वायरस फैलने के संभावित कारण क्या हैं? (What are the potential reasons of spreading viruses ? ) वायरस संक्रमण के कई कारण हो सकते है। इसके संक्रमण के मुख्य कारण इस प्रकार हैं 

पाइरेटेड सॉफ्टवेयर से ( Using A Pirated Software)  जब कोई सॉफ्टवेयर गैर कानूनी ढंग से प्राप्त किया गया हो, तो इसे चोरी की गई ( Pirated) सॉफ्टवेयर कहते हैं। पाइरेटेड सॉफ्टवेयर प्रायः वायरस संक्रमित पाया जाता है चूँकि यह अनाधि कृत स्रोत (unauthentic sources) से प्राप्त किया होता है।

 ■ नेटवर्क सिस्टम से ( Through Network System)  नेटवर्क पर जब कोई क्लाइन्ट (Client) संक्रमित हो जाता है तथा यह दूसरे क्लाइन्ट के साथ शेयर्ड है तब यह पूरे नेटवर्क पर वायरस के संक्रमण का कारण बनता है।

 ■ द्वितीयक संग्रह माध्यम से (Through Secondary Storage Device)  जब कोई डाटा किसी संक्रमित द्वितीयक संग्रह माध्यम से स्थानांतरित या कॉपी किया जाता है तो उसका वायरस भी उसमें स्थानांतरित हो जाता है तथा संक्रमण का कारण बनता है। 

■ इन्टरनेट से (Through Internet )  आज इन्टरनेट को वायरस संक्रमण का मुख्य वाहक (Carrier) माना जाता है। वायरस निर्माता भी इन्टरनेट का प्रयोग वायरस फैलाने के लिए व्यापक रूप से कर रहे हैं।

वायरस का नामकरण कैसे होता है (How Virus is Named) यदि आपने वायरस के बारे में अध्ययन किया होगा तो आपने इनके नाम भी सुना होगा। इनके नाम बड़े ही आकर्षक होते हैं। इस खण्ड में यह देखते है कि वायरस का नाम कैसे पड़ता है? (How are viruses named?)  

वह पहले यह निश्चित करे कि आज का दिनांक 6 मार्च है और यदि वह यह पाता है कि आज 6 मार्च है तब वह डिस्क सेक्टर को दिए गये निर्देश से प्रतिस्थापित करें। वायरस में अन्य प्रोग्राम्स से भिन्न, अपने आप को दुगुना /दोहराने की क्षमता होती है। सामान्यतः कोई प्रोग्राम तब दुगुना होता है जब हम उसके लिए वैसा निर्देश देते हैं जैसे कि COPY कमाण्ड किसी विशेष फाइल की एक प्रति (Copy) बनाने के लिए दी जाती है। हम यह भी जानते हैं कि कोई भी प्रोग्राम तब तक स्वयं एक्जिक्यूट नहीं होता, जब तक कि हम ऐसा कोई निर्देश न दें। ठीक उसी प्रकार वायरस प्रोग्राम भी या तो प्रत्यक्ष रूप से यूजर के द्वारा क्रियान्वित होता है या यूजर द्वारा कोई अन्य प्रोग्राम क्रियान्वित करने पर अब प्रश्न यह है कि कोई भी यूजर किसी वायरस को अपने ही कम्प्यूटर पर क्रियान्वित क्यों करेगा। इसके लिए वायरस निर्माता ऐसी तकनीक का प्रयोग करते हैं जिससे कि यूजर को मूर्ख बनाकर वायरस का क्रियान्वयन हो सके। अधिकतर परिस्थितियों में वायरस पहले से मौजूद एग्जिक्यूटेबल फाइल में होते हैं तथा जब वह फाइल एग्जिक्यूअ होती हैं तो साथ-साथ वायरस कोड भी एग्जिक्यूट हो जाते हैं। एक बार जब यूजर द्वारा वायरस प्रोग्राम एग्जिक्यूट हो जाता है, यह पूरे सिस्टम में फैल जाता है तथा उस प्रोग्राम में उपलब्ध निर्देशानुसार पूरे सिस्टम को क्षति पहुँचाना प्रारम्भ करता है। सामान्यतः वायरस प्रोग्राम धीरे-धीरे अपने आप को दूसरी एग्जिक्यूटेबल फाइल्स में कॉपी करना प्रारम्भ करते हैं और इस तरह उन फाइल्स का जब यूजर द्वारा एग्जिक्यूशन होता है, तब यह पूरे सिस्टम पर फैलते जाते हैंअतः वायरस के संक्रमण के लिए उसका एग्जिक्यूट होना आवश्यक है।

वायरस का नामकरण कैसे होता है (How Virus is Named)

यदि आपने वायरस के बारे में अध्ययन किया होगा तो आपने इनके नाम भी सुना होगा। इनके नाम बड़े ही आकर्षक होते हैं। इस खण्ड में यह देखते है कि वायरस का नाम कैसे पड़ता है? (How are viruses named ? )वह पहले यह निश्चित करे कि आज का दिनांक 6 मार्च है और यदि वह यह पाता है कि आज 6 मार्च है तब वह डिस्क सेक्टर को दिए गये निर्देश से प्रतिस्थापित करें। वायरस में अन्य प्रोग्राम्स से भिन्न, अपने आप को दुगुना/दोहराने की क्षमता होती है। सामान्यतः कोई प्रोग्राम तब दुगुना होता है जब हम उसके लिए वैसा निर्देश देते हैं जैसे कि COPY कमाण्ड किसी विशेष फाइल की एक प्रति (Copy) बनाने के लिए दी जाती है। हम यह भी जानते हैं कि कोई भी प्रोग्राम तब तक स्वयं एक्जिक्यूट नहीं होता, जब तक कि हम ऐसा कोई निर्देश न देंठीक उसी प्रकार वायरस प्रोग्राम भी या तो प्रत्यक्ष रूप से यूजर के द्वारा क्रियान्वित होता है या यूजर द्वारा कोई अन्य प्रोग्राम क्रियान्वित करने पर। अब प्रश्न यह है कि कोई भी यूजर किसी वायरस को अपने ही कम्प्यूटर पर क्रियान्वित क्यों करेगा। इसके लिए वायरस निर्माता ऐसी तकनीक का प्रयोग करते हैं जिससे कि यूजर को मूर्ख बनाकर वायरस का क्रियान्वयन हो सके। अधिकतर परिस्थितियों में वायरस पहले से मौजूद एग्जिक्यूटेबल फाइल में होते हैं तथा जब वह फाइल एग्जिक्यूअ होती हैं तो साथ-साथ वायरस कोड भी एग्जिक्यूट हो जाते हैं। एक बार जब यूजर द्वारा वायरस प्रोग्राम एग्जिक्यूट हो जाता है, यह पूरे सिस्टम में फैल जाता है तथा उस प्रोग्राम में उपलब्ध निर्देशानुसार पूरे सिस्टम को क्षति पहुँचाना प्रारम्भ करता है। सामान्यतः वायरस प्रोग्राम धीरे-धीरे अपने आप को दूसरी एग्जिक्यूटेबल फाइल्स में कॉपी करना प्रारम्भ करते हैं और इस तरह उन फाइल्स का जब यूजर द्वारा एग्जिक्यूशन होता है, तब यह पूरे सिस्टम पर फैलते जाते हैं। अतः वायरस के संक्रमण के लिए उसका एग्जिक्यूट होना आवश्यक है।

वायरस फैलता कैसे है (How Virus Spreads) 

वायरस के बारे में, इसके इतिहास तथा कार्यप्रणाली के बारे में जानने का उद्देश्य इससे बचाव ही होता है। इससे बचाव के लिए यह जानना भी आवश्यक है कि वायरस फैलने के संभावित कारण क्या हैं? (What are the potential reasons of spreading viruses ? ) वायरस संक्रमण के कई कारण हो सकते है। इसके संक्रमण के मुख्य कारण इस प्रकार हैं 

■ पाइरेटेड सॉफ्टवेयर से ( Using A Pirated Software) जब कोई सॉफ्टवेयर गैर कानूनी ढंग से प्राप्त किया गया हो, तो इसे चोरी की गई ( Pirated) सॉफ्टवेयर कहते हैं। पाइरेटेड सॉफ्टवेयर प्रायः वायरस संक्रमित पाया जाता है चूँकि यह अनाधि कृत स्रोत (unauthentic sources) से प्राप्त किया होता है।

 ■ नेटवर्क सिस्टम से ( Through Network System) नेटवर्क पर जब कोई क्लाइन्ट ( Client) संक्रमित हो जाता है तथा यह दूसरे क्लाइन्ट के साथ शेयर्ड है तब यह पूरे नेटवर्क पर वायरस के संक्रमण का कारण बनता है।

 ■ द्वितीयक संग्रह माध्यम से (Through Secondary Storage Device) है जब कोई डाटा किसी संक्रमित द्वितीयक संग्रह माध्यम से स्थानांतरित या कॉपी किया जाता तो उसका वायरस भी उसमें स्थानांतरित हो जाता है तथा संक्रमण का कारण बनता है। 

■ इन्टरनेट से (Through Internet ) आज इन्टरनेट को वायरस संक्रमण का मुख्य वाहक (Carrier) माना जाता है। वायरस निर्माता भी इन्टरनेट का प्रयोग वायरस फैलाने के लिए व्यापक रूप से कर रहे हैं। 10.6 वायरस का नामकरण कैसे होता है ( How Virus is Named) यदि आपने वायरस के बारे में अध्ययन किया होगा तो आपने इनके नाम भी सुना होगा। इनके नाम बड़े ही आकर्षक होते हैं। इस खण्ड में यह देखते है कि वायरस का नाम कैसे पड़ता है ? (How are viruses named?)

वायरस के अच्छे-अच्छे नाम जैसे लूसीफर (Lucifer), इदी ( Eddie), डिस्क वाशर ( Disk Washer) यूजर को अचम्भित करते कि आखिर इनका नाम कैसे दिया जाता है। अधिकतर उदाहरणों में, वायरस का नाम वह लोग देते हैं जो इसका पता लगाते हैं। वायरस निरोध क प्रोग्रामर (Anti-Virus Programmers) नाम का निर्णय वायरस कोड, उसके कार्य, वायरस कोड का आकार, वायरस का अतिरिक्त प्रभाव तथा वायरस लोड के दौरान दिये गये सन्देश के आधार पर देते हैं। इन सब के बाद भी यदि वायरस का उपयुक्त नाम उपरोक्त आधार पर नहीं मिल पाता है तो इसको कोई भी नाम एन्टी-वायरस प्रोग्रामर के द्वारा इसके पहचान के उद्देश्य से दे दिया जाता है। उदाहरणस्वरूप डिस्क वाशर ( Disk Washer) का नाम उसके अंदर के संदेश "From Disk Washer with Love" के आधार पर दिया गया था। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि दो कार्यरत वायरस-निरोधक व्यवसायिक ( Professional) एक ही वायरस एक ही समय में पता लगाते हैं। इस स्थिति में एक ही वायरस का दो अलग नामों से इनकी पहचान होने लगती है। जैसे V3000 जो मैकैफी स्कैन (McAfee Scan) द्वारा नामकरण किया गया था गुमनाम (GumNam) के नाम से भी जाना जाता है जो नैशॉट (Nashot) के द्वारा भी पता लगाया गया था। एक ही वायरस के कई नामों द्वारा उत्पन्न हुई समस्या से यूजर को बचाने के लिए कम्प्यूटर एन्टी वायरस रिसर्च ऑरगेनाइजेशन (Computer Antivirus Research Organisation) अब इस प्रकार का मतभेद होने पर वायरस को एक मानक नाम देते हैं जिससे वह पूरे विश्व में जाना जाता है। किन्तु कैरो (CARO) के द्वारा नामकरण से पहले वह कई नामों से जाने जा सकते हैं जैसाकि उपरोक्त खण्ड में बताया जा चुका है परन्तु जब कैरौ (CARO) अपना एक मानक नाम उसे दे देता है तो उसके बाद से सभी नाम इसके उपनाम (aliases) से जाने जाते हैं।

कुछ प्रसिद्ध वायरस (A few Prominent Viruses) 

आज हमारा कंप्यूटर कई तरह के वायरसों से ग्रस्त होता है। आए दिन नए-नए वायरसों का विकास होता रहता है। इंटरनेट के आविष्कार ने वायरसों के प्रसार को एक नया आयाम दिया है। न जाने कितने तरह के वायरस आज नेट के माध्यम से कंप्यूटर्स को संक्रमित कर रहे हैं। आइए हम इस खण्ड में कुछ अत्यंत प्रसिद्ध वायरसों के बारे में जानते हैं जिन्होंने पिछले दिनों में कंप्यूटर्स को बड़े पैमाने पर संक्रमित किया है। 

1. माइकलएंजिलो (Michelangelo)  -  

अभी तक का सबसे अधिक कुख्यात वायरस माइकल एंजिलो का नाम ऐसा इसलिए पड़ा क्योंकि यह वायरस 6 मार्च जो माइकलऍजिलो का जन्मदिन है, को ही डाटा को समाप्त करता है। कुछ वायरस निरोधक के द्वारा इसे 'March 6 Virus' भी कहा जाता है। इस वायरस का पता 1991 के मध्य में लगाया गया था तथा इसके बाद के सभी वायरस निरोधक सॉफ्टवेयर इसे समाप्त करने में सक्षम थे। इस वायरस के कुख्यात होने के पीछे यह भी कारण था कि बहुत सारे एन्टी-वायरस शोधकर्ताओं ने 6 मार्च को कम्प्यूटर सिस्टम के व्यापक सर्वनाश की ( गलत) भविष्यवाणी की थी। इस भविष्यवाणी का डर लोगों के दिल में 1990 के पूरे दशक तक प्रत्येक 6 मार्च को रहता जो बहुत बाद में समाप्त हुआ।

2. डिस्क वाशर (Disk Washer) -  

डिस्क वाशर वायरस का नाम इसके अन्दर समाहित संदेश 'Diskwasher' के कारण पड़ा। यह वायरस अत्यन्त घातक था, जिसका पता भारत में 1993 के आखिरी महीनों में लगाया गया। यह वायरस तब तक प्रतीक्षा करता था जब तक डिस्क को कुछ संख्या तक एक्सेस ना किया जाए तथा जब यह संख्या पूरी हो जाती थी तब यह हार्ड डिस्क की निम्नस्तरीय (low-level) फॉरमेटिंग प्रारम्भ करता था तथा फॉरमेटिंग के दौरान 'From Diskwasher with love' संदेश प्रदर्शित करता था। यह वायरस इतना खतरनाक था कि यह हार्डडिस्क में उपलब्ध सभी डाटा को ही समाप्त कर देता था।1994 तथा इसके बाद तैयार किये जाने वाले एन्टी-वायरस सॉफ्टवेयर इस वायरस का पता लगाने तथा इसे समाप्त करने में सक्षम थे। 

3. सी ब्रेन (C-Brain)   -

अमजद तथा बासित दो पाकिस्तानी भाईयों ने इस वायरस को जनवरी 1986 में विकसित किया था। हालांकि यह सत्यापित नहीं है कि इस वायरस के निर्माणकर्ता दोनों भाई ही थे। चूँकि वायरस पर उन दोनों भाईयों का सही पता था इसलिए ऐसा अनुमान लगाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को अवै ढंग से सॉफ्टवेयर खरीददारी के लिए हतोत्साहित करना था। इसे दुनिया का संभवत : सबसे पहला वायरस माना जाता है। साथ ही अबतक के सभी वायरसों में यह सबसे अधिक चर्चा में रहने वाला वायरस था। जिसने लाखों कंप्यूटरों को संक्रमित किया था। यह बूट सेक्टर वायरस था। 

4. मैकमैग (Macmag)   -  

इस वायरस की खास बात यह थी कि यह वायरस जैसा लगता नहीं था। यह आपके मॉनीटर पर शांति संदेश देकर समाप्त हो जाता था। इस वायरस की एक खास बात और यह भी थी यह केवल ऐप्ल, मैकिन्टॉश कंप्यूटरों को ही संक्रमित करता था। रिचर्ड ऑॉण्डो (Richard Brandow) को इस वायरस का जन्मदाता समझा जाता है। रिचर्ड मैकमैग पत्रिका के प्रकाशक थे तथा वायरस का नाम इस पत्रिका पर ही पड़ा। इस वायरस ने बहुत बड़ा नुकसान तो नहीं किया परन्तु इसने जो दहशत बनाई वह समय बर्बादी के फलस्वरूप कुछ नुकसान का कारण बना।

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